Tuesday 28 January 2014

कई ख़याल, एहसास और जज़्बात बन के आँखों में आ ठहरे हैं ,
 सारे सपनों को बेघर कर गए हैं,
रात की पोटली भी ख़ाली पड़ी है , कुछ सुकूँ मिले ऐसी कोई लोरी नहीं
साँसें बोझल लगती हैं , कोई भूली बिसरी नज़्म या कोई बासी धुन ही सही
आज सारे सुर खो बैठे हैं शायद
बस इन्हीं छोटे-मोटे, आधे-पौने, गिरते-सम्भलते ख़यालों, एहसासों और जज़बातों का सहारा है
यूँ ये रात भी संवर जायेगी।