कुछ बात है इस शाम की
जो ये सब कुछ नया कर गयी है
जी रहे थे हम भी यूँ तो
पर अब ये हमको ज़िंदा कर गयी है
एक अरसे बाद लगता है धूप ढली है
एक सुकून वाली छाँव फिर से खुली है
हवाओं ने भी रुख बदला है अपना
मेरी राहों को फिर से रवानगी मिली है
घुल रहा है सब कुछ अब इस शाम के रंग में
पा गए वो सब कुछ जैसे खोने के ढंग में
बहना है बस अब खो जाना है खुद में
दिन ये जैसे डूबा इस शाम के रंग में
ये शाम भी अब सोने लगी है
अपनी शाख़ ये खोने लगी है
जिंदा होगी फिर से ये एक नए रंग में
एक शाम फिर मिलेगी एक नए ढंग में
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