Saturday, 11 August 2012

देखो इन पंख पहने पलों को
बस उड़ते ही जा रहे हैं
बेपरवाह यूँ बढ़ते हैं जो
कुछ दास्तान भी पीछे छोड़े जा रहे हैं
एक पल को ये पल ठहरे तो
ज़रा मुर के देखें हम कहाँ जा रहे हैं
अब शायद बहना ही है ज़िन्दगी के साथ
बेवजह ही हवाओं से लरे जा रहे हैं
बीता हर कुछ सौंप के दो जहानों को
आज आसमान के परे हम चले जा रहे हैं.
            

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